देहरादून। सात सितंबर से शुरू हो रहे गणेश महोत्सव के लिए देहरादून में भगवान गणेश की मूर्तियों का बाजार सजने लगा है। देहरादून के चकराता रोड स्थित कुम्हार मंडी में भगवान गणेश की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं। देहरादून में अन्य राज्यों से कलाकार आकर हर साल मूर्तियां बनाने का काम करते हैं। देहरादून के करनपुर स्थित बंगाली लाइब्रेरी में कोलकाता से कलाकार आकर पिछले 40 सालों से मूतियां बना रहे हैं। खास बात यह है कि ये कलाकार इको फ्रेंडली यानी मिट्टियों से बनी मूर्तियां ही तैयार करते हैं, जिनकी डिमांड बढ़ती जा रही है। राज्य और केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दे रही है। ताकि लोग अपने त्योहारों को मनाने के साथ ही त्योहारों के दौरान उन वस्तुओं का इस्तेमाल करें, जिसका असर पर्यावरण पर ना पड़े। गणेश महोत्सव के अवसर पर देशभर में करोड़ों मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिसमें अधिकांश प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियां शामिल होती हैं। क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियां काफी सस्ती होती हैं। जबकि मिट्टी से बनी मूर्तियां काफी महंगी होती हैं। यही कारण है कि लोग पर्यावरण संरक्षण का ध्यान न रखते हुए पीओपी से बनी मूर्तियों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से पर्यावरण संरक्षण के प्रति बड़ी जागरूकता के लिहाज से लोग मिट्टी से बनी मूर्तियों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। धर्मपुर में मूर्ति बनाने का काम कर रहे एक कारीगर ने बताया कि हर साल मूर्तियों का रुझान अलग-अलग रहता है। किसी साल सारी मूर्तियां बिक जाती हैं, तो किसी साल कई मूर्तियां नहीं बिक पाती हैं। ऐसे में उनके पास इन मूर्तियों को रखने की जगह न होने के चलते बनाई गई मूर्तियों को डिस्ट्रॉय करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं। लेकिन पीओपी से बनी मूर्तियां पानी में जल्दी से नहीं घुलती हैं। ऐसे में जब इन मूर्तियों का जल में विसर्जन किया जाता है तो उस दौरान पीओपी की मूर्तियां वैसे ही पानी में पड़ी रहती हैं, इससे नदी दूषित होती है।