देहरादून: बुधवार को उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो रेंज में पेड़ों की कटाई और अवैध निर्माण मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व अधिकारी किशन चंद को कड़ी फटकार लगाई है। इसके साथ ही, देश में राष्ट्रीय उद्यानों के बफर जोन या इससे सटे सीमांत क्षेत्रों में टाइगर सफारी की इजाजत दी जा सकती है या नहीं, इसको देखने के लिए एक समिति गठित करने का आदेश दिया है।
वन्यजीव कार्यकर्ता और वकील गौरव बंसल ने चिड़ियाघर से बाघ लाकर सफारी के नाम पर उन्हें बफर जोन में रखने और कॉर्बेट पार्क में हुए अवैध कटान और निर्माण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई की अनुमति देकर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को नुकसान पहुंचाने के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और तत्कालीन प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को भी फटकार लगाई। कॉर्बेट में पेड़ों की कटाई के पहलू पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तत्कालीन मंत्री और डीएफओ के दुस्साहस से चकित है।
शीर्ष अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण हुए नुकसान के संबंध में पहले से ही मामले की जांच कर रही सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को जंगल की बहाली सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में ये बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री ने खुद को कानून से परे समझा। पीठ ने कहा कि, यह मामला दर्शाता है कि कैसे डीएफओ ने पब्लिक ट्रस्ट डॉक्ट्रिन को कूड़ेदान में फेंक दिया और इससे पता चलता है कि राजनेता और नौकरशाह कैसे कानून को अपने हाथ में लेते हैं.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक-नौकरशाह गठजोड़ ने वन और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया। राज्य को नुकसान की लागत का अनुमान लगाना चाहिए और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाने के दोषियों से इसकी वसूली करनी चाहिए।